प्रधान संपादक की कलम से :-
विगत दिनों कृषि मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया था कि नोटबंदी का किसानों पर बहुत हीं बुरा असर पड़ा। मंत्रालय ने नोटबंदी से कृषि पर प्रभाव के बारे में समिति को भेजे गये जवाब में यह हकीकत स्वीकार की है जिसके सामने आरबीआइ गवर्नर ने भी स्वीकार की है। इससे तो यह साफ है कि नोटबंदी से न केवल किसान बल्कि छोटे उद्योग भी चौपट हो गए। पिछले दो साल में उद्योगों की क्या हालत रही इसके गवाह सरकारी आंकड़े हैं। कृषि मंत्रालय ने समिति को बताया कि नोटबंदी ऐसे समय पर की गई थी जब किसान खरीफ फसलों की बिक्री और रबी फसलों की बुआई में लगे थे और इसके लिए उन्हें तत्क्षण रूपयों की आवश्यकता थी।
सालाना रिपोर्ट (2017-18) एक तरह से नोटबंदी की भेंट चढ़ गई
विगत दिनों जारी हुई भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रिपोर्ट (2017-18) एक तरह से नोटबंदी की भेंट चढ़ गई। इस रिपोर्ट में पहली बार रिजर्व बैंक ने यह बताया कि 500 और 1000 रुपये के नोट बैन करने के नवंबर 2016 के फैसले के बाद कितने नोट उसके पास वापस आए। इसके बाद पूरी बहस इसी एक पहलू पर सिमट गई, जिससे इस रिपोर्ट की अन्य महत्वपूर्ण बातें काफी कुछ अनदेखी रह गईं।
नोटबंदी के व्यापक असर
हालांकि नोटबंदी के व्यापक असर और रिजर्व बैंक द्वारा नोट गिनने में हुए ऐतिहासिक विलंब को देखते हुए न केवल मीडिया बल्कि राजनीतिक लोगों का भी ध्यान इस पहलू पर केंद्रित होना स्वाभाविक था। 99.3 फीसदी प्रतिबंधित नोट वापस आ जाने को विपक्ष की ओर से इस बात का सबूत बताया गया कि नोटबंदी का फैसला हर तरह से नाकाम रहा। बदहाल, राजनीतिक बयानों से हटकर देखें तो नोटबंदी की इस कवायद ने एक बात साफ कर दी कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ब्लैक मनी का जो हवा दिया गया था, उसकी मौजूदगी नोटों की शक्ल में ना के बराबर हीं थी।
इसके दूसरी ओर जाली नोटों की बातें करें तो
शिक्षित लोग जानतें हैं कि देश में जाली नोटों के कारोबार का सबसे बड़ा अड्डा मालदा है। लाख कोशिशों के बावजूद जाली नोट तस्करी नहीं रूक रही थी। चौकसी के बावजूद हर दिन जाली नोटों की खेप पकड़े जा रहे थे। बीएसएफ के मुताबिक नोटबंदी की घोषणा के बाद से जाली नोट को लेकर सक्रिय गिरोह पूरी तरह से भूमिगत हो चुके, बताया जा रहा था कि कहीं से भी जाली नोटों को लेकर आने-जाने की सूचना नहीं मिल रही थी। यह बहुत हीं बड़ी बात थी। सोना, मादक पदार्थ और जाली नोट की तस्करी किसी भी देश के लिए घातक है। लोगों को भी समझने की जरूरत है कि कुछ दिनों की परेशानी से यदि इस तरह के काले कारोबार बंद हो गए तो कितना अच्छा हुआ।
हैरानी तो इस बात का है कि
इसके दूसरी ओर हैरानी तो इस बात का है कि इतना बड़ा फैसला लेने के पहले किसी ने यह क्यों नहीं सोचा कि कहीं बैंक कर्मी सारी मेहनत पर पानी न फेर दें? आखिर इसे लेकर कोई सही आकलन क्यों नहीं किया जा सका कि लोग अपने कालेधन को सफेद बनाने के लिए क्या-क्या जतन कर सकते हैं? अच्छा होगा कि सरकार की ओर से यह स्पष्ट किया जाए कि जब दस हजार करोड़ रुपए छोड़कर सारी रकम बैंकों में वापस आ गई तो नोटबंदी को सफल कैसे कहा जा सकता है?

Chief editor :- Manoj kumar

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