नई दिल्ली : इसकी शुरुआत पहली बार 1993 में हुई थी। जिसका मकसद था दुनियाभर में स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करना और इसकी रक्षा करना। स्वतंत्र पत्रकारिता पर होने वाले हमलों से मीडिया और पत्रकारों को बचाने के लिए इसकी शुरुआत की गई थी। इस वर्ष 2018 में इसका मुख्य लक्ष्य मीडिया की आजादी को गारंटी देने के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका की भूमिका को सुनिश्चित करना। साथ ही चुनाव के दौरान मीडिया की भूमिका और चुनाव में पारदर्शिता के साथ, कानून का राज स्थापित करना भी अहम लक्ष्य है।

 
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे की शुरुआत 1993 में यूएन जनरल एसेंबली द्वारा की गई थी, इसका सुझाव युनेस्को की जनरल कॉफ्रेंस ने दिया था, जिसके बाद इसके सुझाव को लागू किया गया है। इस दिन नामीबिया में विंडहॉक में हुए सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया था कि प्रेस की आजादी को मुख्य रूप से बहुवाद और जनसंचार की आजादी के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसके बाद से हर वर्ष 3 मई को अंतर्राष्ट्रीय प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है।

 
यूनेस्को महासम्मेलन के 26वें सत्र में इससे संबंधित प्रस्ताव को स्वीकार किया गया था। गौरतलब है कि जिस तरह से पिछले कुछ समय में पत्रकारों पर निशाना साधा गया उसके बाद लगातार मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर ने 25 अप्रैल 2018 को अपनी एक रिपोर्ट जारी की जिसमे कहा गया है कि पत्रकारों पर हमले लगातार पिछले समय में बढ़े हैं। इस रिपोर्ट भारत का स्थान 138 जोकि पिछले वर्ष 136 थी। इस रिपोर्ट में पीएम मोदी की ट्रोल आर्मी पर निशाना साधते हुए कहा गया है कि पत्रकारों पर सोशल मीडिया पर हमला करते हैं और हेट स्पीच फैलाते हैं।

(Sabhar/Saujany Se)
 
 

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